पारे से वायुगामी बना जा सकता है। पारे से चाँदी तथा सोना बनाया जा सकता है और पारे से वह गोली भी बनती है जो ‘स्तम्भनराज’ कहलाती है। इसके अलावा, पारे के उपयोग से, जगत के 1 हजार रोग दूर भाग जाते हैं। 14 शोक भी मर जाते हैं और तीनों ‘संताप’ ठण्डे हो जाते हैं।
जिस प्रकार ‘परमात्मा तथा पारा’ एक चीज-उसी तरह से ‘योग तथा भोग’ एक ही चीज हैं।
वर्तमान समय का भोग विकृत
आजकल भोग के केवल दो ही लक्ष है। (1) सन्तान पैदा करना और (2) क्षण भर का सुख-दिन भर दुख। यानी मौज मारना। परन्तु भोग का असली लक्ष्य है समाधि कि जिसे भोगवादी लोग बिल्कुल भूले हुए हैं। जिस भोग से समाधि नहीं लगती, परमानन्द और दीर्घ परमानन्द प्राप्त नहीं होता वह भोग नहीं है रोग है।
और यहाँ पर जैसा कि सुवर्ण और पारद के अटम पर अपना मत और विद्वान सज्जनों के विचार प्रगट किए किए हैं उसी प्रकार सुवर्ण और सीसे के अटम पर चर्चा करेंगे। इस दिशा में यत्न करने वाले सज्जनों के लिए हमारी चर्चा तथा मार्गदर्शक प्रणाली बहुत उपयुक्त होगी। हम चाहते हैं कि भारत का बच्चा-बच्चा इस सूक्ष्म सृष्टि का निरीक्षण और परीक्षण करना सीखे। परीक्षण और निरीक्षण में काफी आनन्द भरा है। संसार का सम्राट एक ओर होता है और निरीक्षण करने वाला तथा सशास्त्र सृष्टि के चमत्कारों का संशोधन करने वाला सज्जन शास्त्रज्ञ और संशोधन एक तरफ होता है। सृष्टि की समस्त सम्पत्ति उसके आधीन हो जाती है। मानो वह सम्राट से भी बढ़कर है। सम्राट के शिर पर मौत की तलवार हमेशा लटकी हुई रहती है, परन्तु सूक्ष्म सृष्टि के भी अन्तर जगत में प्रविष्ट होने वाले सज्जन शास्त्रज्ञों की तलवार मौत को काट देती है सृष्ट पदार्थों के सूक्ष्म अणु रेणुओं का अभ्यास करना चाहो तो भगवान के निराकार रूप को त्रिगुणात्मक ॐ के शिरोधरित अर्धमात्रा के परे शून्य जगत में प्रविष्ट होकर पुण्य तथा तपस्या का फल प्राप्त करो। स्वयं प्रभु बनना है और त्रिगुणात्मक जगत पर अपनी प्रतिष्ठा प्रस्थापित करना है, तो भी।
अब हम आपको यह बता देना चाहते हैं कि इस दिशा में गत 65-70 वर्ष पूर्व के शास्त्रज्ञों ने काफी यत्न करके इस अवर्त पद्धति के अनुसार (अल्प प्रमाण में ही क्यों न हो पर) पारद से सुवर्ण सिद्ध करके दिखाया था।
जर्मनी में प्रो. मिठे और जापान में प्रो. नागा ओका इन्होंने सन् 1924-25 ई. में ऐसे प्रयोग किए थे और पारे से सुवर्ण सिद्ध कर दिखाया था। प्रो. मिठ ने विद्युत दीयों से पारे पर बिजली का प्रभाव अत्यन्त तीव्र गति से सतत दो तीन दिन चालू रखा और अन्त में 0.001 मिलिग्राम याने मक्खी के पर से भी कम सोना सिद्ध करने में सफल हुए थे और उसी प्रकार प्रो. नागा ओका ने भी पारा और पैराफिन तैल के मिश्रण में 15,000 वोल्ट की बिजली की चिनगारियाँ चार घण्टे तक चालू रखी और कुछ सुवर्ण सिद्ध करके बता दिया। परन्तु वह अल्प परिमाण में ही था।
हमारे विचार से प्रो. नागा ओका के प्रयोग में जहाँ पैराफिन आया है, वहाँ अगर असली चन्दन का तैल लेकर और किंचित गन्धनाग मिलाकर यह प्रयोग करते तो अवश्य कुछ विशेष परिमाण में सुवर्ण प्राप्त हो जाता। इतना ही नहीं बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी यह योग विशेष लाभप्रद होना सम्भव है। कारण चन्दन में बीजभूत सुवर्ण का अंश है और गन्धनाग पारद का जीवन है। अर्थात इन भौतिक पदार्थों की गिजा उसको मिलने से वह सुवर्ण का रूप धारण कर लेगा। हमने इससे पहले भी निवेदन किया है कि भौतिक उपाधियों के सिवाय अकेला पारद सुवर्ण नहीं बन सकता और यह विचार सत्य है। चूंकि प्रो. नागा ओका के प्रयोगों के पश्चात अमेरिका, इंलैण्ड, जर्मनी इत्यादि राष्ट्रों में इस दिशा में कई लोगों ने जब प्रयोग किए तब उन्होंने इस क्रिया में आने वाले पदार्थों का पृथःकरण करके उनमें से सुवर्ण का अंश निकाल दिया