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फिटकड़ी युक्त सिद्ध-गन्धक तैल बनाने की क्रिया Alum containing sulfur oil Ancient experiment

फिटकड़ी युक्त सिद्ध-गन्धक तैल बनाने की क्रिया

यह प्रयोग महा अद्भुत है अतः इसको ध्यान पूर्वक पढ़ो।


ऐसे योग साधु संन्यासियों के सिवाय और कहीं नहीं मिलेंगे।


आपने अनेक बार सुना भी होगा कि फलां साधु ने ताँबे के पैसे को


किसी पदार्थ का तैल लगाया और उसको तपाकर उसका सोना बनाया किन्तु

उसको पूछने पर या और किसी खिलाड़ी से पूछने पर वह बताते हैं कि वह गन्धक का तैल था।


किन्तु असली भेद कोई बताता है और ऐसा अधूरा योग


सुनकर या देखकर यदि कोई गन्धक का तैल बनाने का प्रयत्न करता है तो

उसके पीछे लगकर वह लाखों की खाक करके बैठ जाता है।


फिर भी वह तैल नहीं बनता जो साधु संन्यासियों की झोली में रहता है।


आप जानते हो? साधु संन्यासी जो भी क्रियाएँ सिद्ध करते हैं


वह सब शास्त्रोक्त ही रहती हैं, किन्तु उनकी कुञ्जियाँ गुरूगम्य


ही होती हैं। वह कुन्जी जब तक किसी साधक के हाथ नहीं आती तब

तक कोई भी क्रिया सिद्ध नहीं होती।


अब हम यहाँ पर अपने प्रिय सब्स्क्रिबर के लिए तथा रसायन साधकों के

लिए उन अनहोनी घटनाओं के गुप्त भेद प्रगट करेंगे जिनके लिए हमको स्वयं ‘करतल भिक्षा

तरूतल बासा’ करना पड़ा था।


वह फिटकड़ीयुक्त गन्धक तैल और उसके रहस्यात्मक गुप्त भेद तथा

खेल और मेल सब पूरे बताकर यह फिटारी कल्प समाप्त करेंगे।

फिटकड़ी युक्त सिद्ध-गन्धक तैल योग

फिटारिका केशर गन्धकंच कासीस संयुक्तं।


अष्टसतुयाम पेष्य। पात्रे स्थितं काचक तस्य मुद्रा जलंच।


पुर्णाना करोति सत्य। द्वादशपर्यन्तं वन्हिदत्वा स तैलकं।


ताम्र भेदो भवेत सत्यं

1 अर्थ-फिटकड़ी, जाफरान (केशर), गन्धक और हीरा कसीस


इन चार पदार्थों को समभाग लेकर आठ पहर महीन पीसें और


काँच की कुप्पी में भरकर उस कुप्पी को जल मुद्रा देकर


बारह पहर अग्नि पर पकाने से यह तैल सिद्ध होता है।


यह योग सत्य है और यह तैल ताम्रवेधी है।


इस तैल प्रयोग को सिद्ध योग कहते हैं।


यह हुआ श्लोकार्थ तथा टीका।


परन्तु अद्यावधि इस प्रयोग के अन्तर्गत काफी रहस्य गुप्त हैं।


उनका स्पष्टीकरण हुए बिना कोई भी साधक इस क्रिया को सिद्ध कर ही नहीं सकता।


अब हम अपनी अल्पबुद्धि अनुसार इसके स्पष्टीकरण की चेष्टा करेंगे


और रसायन सिद्धि का यह दुर्गम मार्ग सुगम बनाकर छोड़ेंगे


ताकि मेरे प्यारे सब्स्क्रिबर तथा समस्त भारतीय कीमियागरों को इस विषय का पूर्णतया ज्ञान हो जाए और


भारत की प्राचीन विद्या की महत्ता लुप्त न हो


मेरे निमत्ति कारण देह से कार्य की पूर्ति होकर सूक्ष्मात्मा को


शान्ति मिले तथा मेरे जन्मजन्मांतरों से इस विद्या विषयक किए हुए


अनुसन्धानों से तथा भारत की प्राचीन कीमियागरी के संशोधन से मेरे समस्त विश्व बन्धुओं को लाभ पहुँचे।

अब देखिए वह सत्यान्वेषण।


इस क्रिया के लिए फिटकड़ी लाल रंग वाली लेनी चाहिए


और केशर असली लेना चाहिए।


गन्धक शुद्ध तथा सिद्ध लेना चाहिए और कसीस (हीरा कसीस) लाल लेनी चाहिए।

उपरोक्त चारों पदार्थ अग्निसह काँचकुप्पी (आतशी शीशी)


में भरना और कुप्पी के मुँह को दृढ़ जल मुद्रा लगाकर उस कुप्पी

को बारह प्रहर जल में पकावें।


ऐसी क्रिया करने से वह कुप्पी पक्व रसायन सुमनोहर ताम्रवेधी फिटकड़ी

युक्त सिद्ध गन्धक रूप में वह तैल प्राप्त होगा जिसके लिए आज तक लाखों

कीमियागर शरीर पर भभूति रमाकर साधु संन्यासियों के पीछे-पीछे बन-बन भटकते फिरे ।


वही है यह सिद्ध गन्धक तैल।


वैसे तो इस तैल के कई भेद हैं किन्तु उन ही में से यह भी एक है।


यह तैल ताम्र पैसे को या ताम्र पत्र पर लगाकर अग्नि में तपाने से शुद्ध सुवर्ण सिद्ध होता है।


अस्तु शुभंभवन्तु। ॐ नम शिवाय

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