फिटारी का मतलब है फिटकरी और इस फिटकरी के प्राचीन रसायन शास्त्रों में अनेक नाम मिलते हैं।
जैसे-तुरी, फुल्लतुवरी, फिटकड़ी, फटारी, श्वेत शिलाजीत, तुरटीअल,
अंलम, कांक्षी, सौराष्ट्रजा और फुल्लिका-द्वितीया इत्यादि तथा पारद जारिणी,
स्फटिका, रंगदा, जाज, झाके-झाके सफेद वगैरह और भी कई नाम इसके अनेक भाषाओं में पाए जाते हैं।
अल्युमिनियम धातु जो श्वेत रंग की और हल्की होती है और सारे संसार भर में आज वह व्याप्त है,
यह धातु इसी फिटकड़ी का सत्व है।
इसके अद्य खनिज को भूस्तर शास्त्रज्ञ ‘बॉक्साइड’ के नाम से पुकारते हैं।
सिद्ध सोमल फिटकरी योग
फिटारी वसमध्येच मेषमध्येच विष श्वेतं स्व पक्वंच, बिन्दु-बिन्दु स्व पक्वं॥1॥
अथ मुलिका रसमध्येच पक्वं कृत्वा विषं।
पूर्व योग कृतं सत्यं कथीरं भवति चन्द्रिका
॥2॥ भृत्वा सिद्ध योग मुदा हृतः॥द्रुतं।
बकरे की चरबी में फिटकड़ी को द्रवित कर लो।
तदन्तर सोमल पर बूंद-बूंद उसका चोवा देकर सोमल को अग्नि पर पकावो।
प्रथम सोमल को मूली के रस में
पका लेना चाहिए पश्चात उपरोक्त योग सिद्ध करने से वह बंग की चाँदी बनाएगा।
यह सत्य और सिद्ध योग है।
यह हुआ श्लोकार्थ, अब स्पष्टार्थ देखिए।
क्रिया क्रमांक 50 सोमल शुद्धि नं. 1
पक्व मूली की जड़ का रस निकालों पत्ते फेंक दो और उस रस में तीन प्रहर दोला यन्त्र से श्वेत संखिया (सोमल) को पकावो।
अब यह संखिया शुद्ध हुआ, इसको निकाल कर पृथक रखो।
एक भाग श्वेत फिटकड़ी और तीन भाग मेंढे की चरबी।
खरल में डालकर तीन दिन खरल करो और चौथे दिन कांसी की थाली
में वह कल्क चुपड़कर तेज धूप में रख दो और संध्या के समय थाली को उठाकर देखो।
जितना तैल निथरा हो उतना शीशी में भरकर रख दो।
पुनः दूसरे दिन वैसी ही धूप देकर तैल ग्रहण कर लो।
जब सम्पूर्ण तैल निकल आवे तब आगे की क्रिया करें।
एक अल्युमिनियम की कटोरी लो और उसमें उपरोक्त शुद्ध सोमल रखो।
पश्चात उस कटोरी को मन्दाग्नि पर रखो और फिटकड़ी का तैल सोमल की डली पर बूँद-बूंद टपकावो।
फिर एक घण्टे के बाद उसमें सूई चुभोकर देखो अगर मोम बना होगा तो सूई आसानी से अन्दर घुसेगी वरना और चोवा दो।
जब सूई घुसे तब उतारकर स्वांगशीतल होने दो और फिर किंचित टुकड़ा तोड़कर अंगार पर डालकर देखो अगर वह धुआँ नहीं देगा और तैल
की भाँति पिघलेगा तो सिद्ध बना समझो।
नोट-इस क्रिया में अगर दुम्बे की चर्बी ली जाएगी तो भी चलेगी।