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संस्कृत | हरितालम् |
हिंदी | हरताल |
English | Orpiment yellow arsenic |
Chemical formula:- As2S3 (arsenic trisulphide)
काठिन्य:- 1.5-2
विशिष्ट गुरुत्व:- 3.4- 3.5
पर्याय:-
हरिताल, ताल , नटभूषण, विडालक , मल्लगन्धज, वङ्गारि, विरल, गोदन्त।
प्राप्ति स्थान:-
हरताल प्रायः विदेशों से ही भारत में आता है। इटली ईरान हरताल के प्रमुख उत्पादक देश है सम्प्रति कृत्रिम हरताल का निर्माण सूरत एवं कलकत्ता में होता है।
हरताल भेदः हरताल दो प्रकार का होता है:
(1) पत्र हरतालः उत्तम
(2) पिण्ड हरताल : अधम
1 पत्र हरताल:-
●सुवर्ण सदृश पीतवर्ण, भार में गुरु, स्निग्ध,● पतले छोटे छोटे बहुत से पत्रों से युक्त और चमकदार होता है।
◆ यह रसायन एवं औषधकार्य के लिए श्रेष्ठ होता है। इसमें अत्यल्प प्रमाण में बुद्धि होती है।
2.पिण्ड हरताल:-
●यह पत्र रहित, पिण्ड के समान, अल्पसत्त्व वाला और चमकरहित होता है।
◆यह पत्र हरताल की अपेक्षा अल्प गुणयुक्त एवं स्त्रियों के आर्तवस्राव को नष्ट करता है
शोधन की आवश्यकता:-
● अशुद्ध हरताल का सेवन करने पर ●अल्प दाह, क्षोभ, ●शरीर में कम्पन, तोद, ●रक्त विकार, कुष्ठ रोग, वातकफविकार, ●मत्युकारक एवं शरीर की सुन्दरता को नष्ट करने वाला होता है।
◆अत शोधन करके ही इसका औषधि कार्य में प्रयोग लेना चाहिए।
हरताल शोधन:-
“स्विन्नमं कूष्माण्डतोये वा तिलक्षारजलेऽपि वा। तोये वा चूर्ण संयुक्ते दोलायन्त्रेण शुद्ध्यति।।” (र. र. स. 3/74)
कूष्माण्ड स्वरस, तिलक्षार जल एवं चूर्णोदक में से किसी भी एक द्रव दोला यन्त्र विधि से स्वऐदन करने पर हरताल शुद्ध हो जाता है।हरताल
हरताल मारण:-
शुद्ध पत्र हरताल को एक दिन तक पुनर्नवा स्वरस में मर्दन करके गोल आकार की चक्रिका बनाकर सुखायें।
अब एक भाण्ड के आधे भाग में पुनर्नवाक्षार भरकर उसके मध्य हरताल की चक्रिका को रखकर शेष आधा भाग पुनर्नवा क्षार से भर दें।
फिर इस भस्म यन्त्र को चुल्हे पर रखकर अग्नि प्रज्वलित कर क्रमशः अग्नि बढाते जाये और निरन्तर पाँच दिन तक पाक करें। तत्पश्चात् स्वाङ्गशीत होने पर हरताल भस्म को प्राप्त करे।
हरताल भस्म परीक्षा–
यदि हरताल भस्म को अग्नि पर डाला जाय तो उसमें से धुआं निकलने पर भस्म तैयार है और धुँआ निकलने पर ठीक मारण नहीं हआ है, ऐसा जानना चाहिए।
भस्म गुण:-
●हरताल भस्म रस में कटु, तिक्त, कषाय, गुण प.गुरु एवं वीर्य में उष्ण होती है।
◆ इससे कफ विकार, रक्त विकार, विष एवं भूत ा नष्ट हो जाते है। ●अकेले हरताल का सेवन करने पर स्त्रियों का आर्तव नष्ट हो जाता है।
● यह अग्निदीपक बल्य, कान्तिवर्द्धक, वृष्य, ओजकर, पुष्टिकर एवं मृत्यु नाशक है।
हरताल भस्म मात्रा:-4 से 2 रत्ती तक
हरताल सेवन में अनुपान–
गुडूची कषाय, शहद, घृत आदि।
हरताल सेवन में पथ्य-
हरताल सेवन करने वाले व्यक्ति को लवण, अम्ल, कटु रस वाले पदार्थों एवं आतप सेवन का त्याग करना चाहिए। लवण का त्याग सम्भव नहीं हो तो सैंधव लवण का सेवन करे।
सेवनजन्य विकार शमन उपाय-
हरताल सेवन करने पर विकार की शान्ति के लिए शर्करा युक्त जीरक का तीन दिन तक सेवन करें।
अब जीरा, मधु एवं कूष्माण्ड स्वरस को दिन में तीन बार सेवन करायें।
हरताल सत्त्वपातनः–
एक पल हरताल को खल्व में डालकर अर्कदुग्ध से एक दिन भावना देकर सुखायें।
फिर उसमें एक तोला तिलतैल मिलाकर अच्छी तरह मर्दन कर काँच यूपी में भरकर बालुका यन्त्र विधि से खुली जगह पर 7 प्रहर तक पाक करें। स्वागत शीत होने पर यूपी के तल भाग में स्थित श्वेतवर्ण का हरताल सत्त्व प्राप्त करें।
रसमाणिक्य निर्माण-
शुद्ध हरताल चूर्ण को दो अभ्रक छात्रों के मध्य रखकर मंदाकिनी हटाकर स्वयं शीत करें। फिर सावधानी से रसमाणिक्य को प्राप्त करें। यह वातश्लेष्य ज्वर में प्रशस्त होता है। जहाँ-जहाँ पर हरताल का उपयोग अपेक्षित हो वहाँ पर रसमाणिक्य का प्रयोग लाभ दयक होता है।
हरताल भस्म के प्रमुख योग-
(1) तालकेश्वर रस
(2) ताल सिंदूर
(3) नित्यानंद रस
(4) वातगजांकुश रस
(5) समीरपन्नग
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