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हरताल वर्की अतिरिक्त चेहरे के बालों को स्थायी रूप से हटाने में मदद करता है प्राकृतिक, सस्ती और किसी भी प्रकार के दुष्प्रभावों से मुक्त है। इस सरल उपाय का पालन करें और अवांछित बालों की समस्याओं को अलविदा कहें।
हम प्रामाणिक जड़ी बूटियों की पेशकश, जीएमपी सिद्धांतों के अनुसार संभाला. असाधारण विचार नए और unadulterated फिक्सिंग का उपयोग करने के लिए लिया जाता है, जड़ी बूटियों को उचित रूप से स्क्रब किया जाता है और पारंपरिक/निश्चित लेखन/तकनीकों के अनुसार संभाला जाता है ताकि इसकी विशेषता गंध, छायांकन, स्वाद, पुण्य और पर्याप्तता और गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। कोशिश कर रहा लायक!! !
हरताल (HARTAL) Arsenic Sulfide, Yellow orpiment
रंग: हरताल का रंग पीला होता है।
स्वाद: इसका स्वाद फीका होता है।
स्वरूप: हरताल एक खनिज पदार्थ है।
यह चार प्रकार का होता है।:-
- वंशपत्री
- तबकीहरताल
- गुवरियाहरताल
- गोदन्तीहरतालइत्यादि।
स्वभाव: यह गर्म होती है।
हानिकारक: हरताल का अधिक मात्रा में उपयोग करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है।
दोषों को दूर करने वाला: घी और पीला हरड़, हरताल के दोषों को दूर करता है।
तुलना: मैनफल से हरताल की तुलना की जा सकती है।
मात्रा: 1 ग्राम।
गुण : हरताल मोटापे में बढ़े मांस तथा मस्सों को गिरा देती है, खुजली के दागों को मिटा देती है, प्यास बहुत बढ़ाती है, खून तथा त्वचा की खराबी को खत्म करती है, पेट के कीड़ों को मल के साथ बाहर निकाल देती है, बालों को गिराती है। यह गर्मी और विष को खत्म करने वाली है, कण्डू (खुजली), कुष्ठ (कोढ़) और मुंह के रोगों को खत्म करती है, खून के रोगों का नाश करती है। कफ पित्त, वात और फोड़ों को दूर करती है, चेहरे की चमक को बढ़ाती है, बुढ़ापे और मौत को जल्द आने नहीं देती है। चुटकी भर हरताल भस्म और उसकी छ: गुनी चीनी मिलाकर खाने से सभी प्रकार के वायु रोग दूर हो जाते हैं।
अशुद्ध अशोधित हरताल : यह आयु का नाश करती है, कफ और वात को बढ़ाती है। प्रमेह और ताप को उत्पन्न करती है, चेचक रोग को पैदा करती है। अशुद्ध हरताल पीली होती है और आग पर डालने से धुंआ देने लगती है। यह वात, पित्तादि दोषों को बढ़ाती है। शरीर में लंगड़ापन और कोढ (कुष्ठ) को पैदा करती है जिससे मृत्यु भी हो जाती है। अशुद्ध हरताल शरीर की सुन्दरता को खत्म करती है, बहुत ही जलन तथा अंगों की सिकुड़न और दर्द को भी दूर करती है।
जो हरताल सोने के समान रंग वाली भारी, चिकनी तथा अभ्रक के समान पत्र वाली है। वह शुद्ध हरताल है, यह हरताल अधिक गुणों से युक्त अच्छी होती है। हरताल आठ तरह की होती है लेकिन सबसे अच्छी गोदन्ती हरताल होती है। हरताल को हर तरह के खून के रोगों में आंबा हल्दी के साथ, मिर्गी में शुद्ध बच्छनाग के साथ, जलोदर रोग में समुद्रफल के साथ तथा भगन्दर रोग में देवदाली के रस में देना चाहिए।
हरताल के उचित मात्रा में उपयोग से भगन्दर, उपदंश, विसर्पमण्डल (छोटी-छोटी फुंसियों का दल), कुष्ठ, पामा, चेचक, वातरक्त आदि रोग ठीक होते हैं। हरताल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में खाना चाहिए और नमक, खटाई तथा मिर्च आदि को एकदम छोड़ देना चाहिए। हरताल श्वांस, खांसी और क्षय रोगों को दूर करती है तथा पित्त, वातरक्त, दमा, खुजली, फोड़ा और कोढ़ को दूर करती है।
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हरताल न वानस्पतिक है, और न जांगम। यह स्थावर द्रव्यों की श्रेणी में आता है। यानी एक खनिज द्रव्य है। हरताल दो तरह का होता है- स्वेत और पीत।स्वेत को गोदन्ती हरताल भी कहते हैं, और पीत को हल्दिया हरताल के नाम से जाना जाता है। यह अभ्रक की तरह चमकीला और किंचित परतदार होता है। अपेक्षाकृत वजनी भी होता है। इसमें संखिया (Arcenic) का अंश पाया जाता है,इस कारण जहरीला भी है। सामान्य अवस्था (बिना शोधन के) में इसका भक्षण जानलेवा है। आयुर्वेद के साथ-साथ तन्त्र में इसका विशेष प्रयोग है। यन्त्र लेखन में इसे स्याही की तरह उपयोग किया जाता है। कुछ विशिष्ट होम कार्यों में भी इसका उपयोग होता है। भगवती पीताम्बरा बगला की साधना में हल्दिया हरताल के बिना तो काम ही नहीं हो सकता। तात्पर्य यह कि इनकी साधना में अत्यावश्यक है। चन्दन के रुप में और होम में भी। अन्य विभिन्न अष्टगन्धों के निर्माण में हरताल का उपयोग किया जाता है।
जड़ी-वूटी विक्रेताओं के यहां आसानी से उपलब्ध है। वर्तमान में इसका बाजार भाव डेढ़-दो हजार रुपये प्रति किलोग्राम है। जल में आसानी से घुलनशील है। अतः चन्दन की तरह घिस कर उपयोग किया जा सकता है।
गुरुपुष्य योग में बाजार से खरीद कर इसे घर ले आयें, और गंगाजल से शुद्ध कर, पीले नवीन वस्त्र का आसन देकर पीतल की कटोरी में पीठिका पर रख कर, पंचोपचार पूजन करें। पूजनोपरान्त श्री शिवपंचाक्षर मंत्र का ग्यारह माला जप करने के बाद, प्रथम दिन ही ग्यारह माला पीताम्बरा मंत्र का भी जप करें। ध्यातव्य है कि शिवपचंचाक्षर मंत्र-जप रुद्राक्ष के माला पर, और पीताम्बरा मंत्र-जप हल्दी के माला पर करना चाहिए। आगे छत्तीश दिनों तक पूर्ण अनुष्ठानिक विधि से उक्त दोनों जप होना चाहिए, यानी लगभग ढाई घंटे नित्य का कार्यक्रम रहेगा। एक बार में स्वार्थवश “बहुत अधिक मात्रा पर” प्रयोग न करें। सौ ग्राम की मात्रा पर्याप्त है- एक बार के प्रयोग के लिए।
भगवती बगला की उपासना में विभिन्न प्रयोग बतलाये गये हैं।सभी में इसका उपयोग किया जा सकता है। हल्दी के चूर्ण के साथ दशांश मात्रा में मिलाकर हवन करने से सभी प्रकार के अभीष्ट की सिद्धि होती है।
इस प्रकार विधिवत साधित हल्दिया हरताल को मर्यादा पूर्वक काफी दिनों तक सुरक्षित रख कर प्रयोग में लाया जा सकता है। षटकर्म के सभी कार्य इससे बड़े ही सहज रुप में सिद्ध होते हैं। जल में थोड़ा घिसकर नित्य तिलक लगायें- इस साधित हरताल का। विश्वविमोहन का अमोघ अस्त्र है यह। किन्तु ध्यान रहे- साधना का दुरुपयोग न हो, और न व्यापार हो तान्त्रिक वस्तुओं का। दुरुपयोग का सीधा परिणाम है- गलितकुष्ट। दुरुपयोग से- साधित ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन अवरुद्ध होकर, अन्तः क्षरण का कार्य होने लगता है। परिणामतः रस-रक्तादि सप्तधातुओं से निर्मित शरीर के सभी धातुओं का हठात् क्षरण होने लगता है, और अन्त में गलित कुष्ट के रुप में लक्षित होता है।
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