इसके लिए हमें दोनों में अंतर को समझना होगा
सोने और पारे में अंतर
बिलकुल आपस में एक दूसरे के समीप के है। आप पूछोगे कि यह कैसे? तो वह भी हम आपको बताने की कोशिश करेंगे
अवर्त पद्धति और पारद परिवर्तन विचार अर्थात स्वर्ण पारद साम्यवाद
सुवर्ण का परमाणु गुरुत्व 197.2 है और पारद का परमाणु गुरुत्व 200 है तो दोनों की परमाणु रचना में कोई विशेष फर्क नहीं दीखता है
सुवर्ण केन्द्रस्थ धनविद्युत कण %3D
परमाणु गुरुत्व 197 केन्दस्थ ऋण विद्युतकण अनुक्रमांक 197-118 % 3D 118
फिरने वाले ऋण विद्युतकण 79 = = 79
पारद MERCURY
परमाणु गुरुत्व 200 ऋण विद्युतकण अनुक्रमांक 200-120
200
3D 80 फिरने वाले ऋण विद्युतकण = 80 इस पर से यह अनुमान आसानी से निकाला जा सकता है कि अगर हमको पारद से सोना बनाना है तो परमाणु गुरुत्व सिर्फ तीन ही कम करना चाहिए और अनुक्रमांक याने उसके परमाणु के केन्द्र में से तीन विद्युत कण हमने निकाल दिये तो फिर अब उसके केन्द्र का परमाणु गुरुत्व तीन तो अवश्य कम होगा। जैसा (200-3=197) यह परमाणु गुरुत्व सोने के बराबर ही होगा। परन्तु उसके साथ और उसके केन्द्र का विद्युद्धन अगर तीन कम हुआ तो वह (80-3=77) इतना ही रहेगा जो ठीक न होगा। सोने का केन्द्रीभूत विद्युद्धन तो 79 होता हैं और वह उतना ही रहना चाहिए जब किसी युक्ति से उसके केन्द्र का वजन कायम रखकर अगर उसमें दो विद्युद्धन बढ़ा दिए जाएँ तब उसका परमाणु गुरुत्व 197 रहकर विद्युद्धन 77 + 2 = 79 होगा। और ऐसी पद्धति से बना हुआ वह पारे का परमाणु बिल्कुल स्वर्ण के परमाणु समान होगा।
जब उसमें हमको दो विद्युद्धन बढ़ाने के होंगे, तो वह भी दो पद्धति से बढ़ाए जा सकते हैं।
प्रथम पद्धति याने रीति यह है कि उसके केन्द्र में दो विद्युतकण और डाल दें, परन्तु ऐसा करने से उसका वजन भी और दो से दो ही बढ़ेगा। खैर
दूसरी पद्धति याने रीति यह है कि उसके केन्द्रस्थ ऋण विद्युतकणों में से दो कण बाहर निकाल डालें । ऐसे करने से अलबतः उसके केन्द्र का विद्युतऋण दो कम होगा अथवा दो विद्युद्धन बढ़ेगा। ऋण विद्युतकरणों का वजन बहुत ही थोड़ा है। एवं परमाणु का वजन पूर्ववत ही 197 रहेगा। जैसा
पारे का परमाणु-3 धनविद्युतकण-2 ऋणविद्यतुकण सुवर्ण कारण गुरुत्व 200 -3 – 0 =197 विद्युद्धन 80 -3 + 2 = 79
अतएव इस पर से यह अनुमान अवश्य निकल सकता है कि ऐसी पद्धति से अगर पारे के परमाणुओं में से 3 विद्युतकण और 2 ऋण विद्युतकण बाहर निकाल दिए गए तो अवश्यमेव ही पारद का सुवर्ण बनना चाहिए। अर्थात ऐसा करने से फिर कीमिया के समीप हम पहुँचेंगे। अपितु इतना ही नहीं बल्कि कीमिया सिद्ध हुई ऐसा कहने में कोई शंका न होगी।
केन्द्र में सैकड़ों धन विद्युतकण और ऋण विद्युतकण रहते हैं, तब उनमें से दो तीन धन विद्युतकण अथवा ऋण विद्युतकण कम अथवा अधिक करें। यह कार्य देखने में विशेष कठिन नहीं प्रतीत होता। इसलिए कीमिया अर्वाचीन शास्त्र को शक्य कोटि की लगने लगी है और तब ही समस्त प्राचीन और अर्वाचीन रसायन शास्त्रज्ञों ने इस दिशा में महान-महान प्रयत्न किए हैं अस्तु
पारद के परमाणु केन्द्र में से 2-3 धन विद्युतकण व ऋण विद्यतुकण बाहर निकालने के लिए उसके केन्द्र को बड़े जोर की ठोकर लगना चाहिए तब वहीं उसका केन्द्र महलूल होकर उसमें से वह विद्युतकण बाहर निकलेंगे। धन विद्युत और ऋण विद्युत परस्पर आकर्षण करते रहते हैं। जैसे-जैसे वह अन्तरित होते जाते हैं वैसे उनका आकर्षण अधिक बढ़ता जाता है।
केन्द्र का आकार अत्यन्त सूक्ष्म होने से उसके केन्द्रस्थ विद्युतकणों का अन्तर भी वैसा ही अत्यन्त सूक्ष्म रहता है, जिसके कारण उसके केन्द्रस्थ ऋण विद्युतकण और धन विद्युतकण आपस में तीव्र गति से आकर्षण करते रहते हैं। अतएव इन कणों को उसमें से बाहर निकालने के लिए उनको बड़े जोर का धक्का (ठोकर) लगना चाहिए, यह बात अब निर्विवाद सिद्ध हैं। यह कार्य प्रत्यक्ष में बहुत सरल प्रतीत होता है, परन्तु है बहुत ही कठिन। इसलिए हमारे प्राचीन आचार्यों ने पारद पर 8-16 तथा 18 संस्कार करने की आज्ञा दी है। षड़ गुण गन्धक जारणा, क्रामण आदि और खरल करना पुट देना तथा बीड़ों से उनके अणुरेणू और परमाणुओं को फोड़कर सूक्ष्मातिसूक्ष्म करना इत्यादि । परन्तु हम इतना सब करके भी असफल होते जा रहे हैं इसका कारण क्या है?
कारण यही है कि हमें अणु परमाणुओं का ज्ञान अल्प रहता है
और यहाँ पर जैसा कि सुवर्ण और पारद के अटम पर अपना मत और विद्वान सज्जनों के विचार प्रगट किए किए हैं उसी प्रकार सुवर्ण और सीसे के अटम पर चर्चा करेंगे। इस दिशा में यत्न करने वाले सज्जनों के लिए हमारी चर्चा तथा मार्गदर्शक प्रणाली बहुत उपयुक्त होगी। हम चाहते हैं कि भारत का बच्चा-बच्चा इस सूक्ष्म सृष्टि का निरीक्षण और परीक्षण करना सीखे। परीक्षण और निरीक्षण में काफी आनन्द भरा है। संसार का सम्राट एक ओर होता है और निरीक्षण करने वाला तथा सशास्त्र सृष्टि के चमत्कारों का संशोधन करने वाला सज्जन शास्त्रज्ञ और संशोधन एक तरफ होता है। सृष्टि की समस्त सम्पत्ति उसके आधीन हो जाती है। मानो वह सम्राट से भी बढ़कर है। सम्राट के शिर पर मौत की तलवार हमेशा लटकी हुई रहती है, परन्तु सूक्ष्म सृष्टि के भी अन्तर जगत में प्रविष्ट होने वाले सज्जन शास्त्रज्ञों की तलवार मौत को काट देती है सृष्ट पदार्थों के सूक्ष्म अणु रेणुओं का अभ्यास करना चाहो तो भगवान के निराकार रूप को त्रिगुणात्मक ॐ के शिरोधरित अर्धमात्रा के परे शून्य जगत में प्रविष्ट होकर पुण्य तथा तपस्या का फल प्राप्त करो। स्वयं प्रभु बनना है और त्रिगुणात्मक जगत पर अपनी प्रतिष्ठा प्रस्थापित करना है, तो भी।
अब हम आपको यह बता देना चाहते हैं कि इस दिशा में गत 70-75 वर्ष पूर्व के शास्त्रज्ञों ने काफी यत्न करके इस अवर्त पद्धति के अनुसार (अल्प प्रमाण में ही क्यों न हो पर) पारद से सुवर्ण सिद्ध करके दिखाया था।
जर्मनी में प्रो. मिठे और जापान में प्रो. नागा ओका इन्होंने सन् 1924-25 ई. में ऐसे प्रयोग किए थे और पारे से सुवर्ण सिद्ध कर दिखाया था। प्रो. मिठ ने विद्युत दीयों से पारे पर बिजली का प्रभाव अत्यन्त तीव्र गति से सतत दो तीन दिन चालू रखा और अन्त में 0.001 मिलिग्राम याने मक्खी के पर से भी कम सोना सिद्ध करने में सफल हुए थे और उसी प्रकार प्रो. नागा ओका ने भी पारा और पैराफिन तैल के मिश्रण में 15,000 वोल्ट की बिजली की चिनगारियाँ चार घण्टे तक चालू रखी और कुछ सुवर्ण सिद्ध करके बता दिया। परन्तु वह अल्प परिमाण में ही था।
हमारे विचार से प्रो. नागा ओका के प्रयोग में जहाँ पैराफिन आया है, वहाँ अगर असली चन्दन का तैल लेकर और किंचित गन्धनाग मिलाकर यह प्रयोग करते तो अवश्य कुछ विशेष परिमाण में सुवर्ण प्राप्त हो जाता। इतना ही नहीं बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी यह योग विशेष लाभप्रद होना सम्भव है। कारण चन्दन में बीजभूत सुवर्ण का अंश है और गन्धनाग पारद का जीवन है। अर्थात इन भौतिक पदार्थों की गिजा उसको मिलने से वह सुवर्ण का रूप धारण कर लेगा। हमने इससे पहले भी निवेदन किया है कि भौतिक उपाधियों के सिवाय अकेला पारद सुवर्ण नहीं बन सकता और यह विचार सत्य है। चूंकि प्रो. नागा ओका के प्रयोगों के पश्चात अमेरिका, इंलैण्ड, जर्मनी इत्यादि राष्ट्रों में इस दिशा में कई लोगों ने जब प्रयोग किए तब उन्होंने इस क्रिया में आने वाले पदार्थों का पृथःकरण करके उनमें से सुवर्ण का अंश निकाल दिया
और फिर पारद पर उसके संस्कार करके देखे कि अब सुवर्ण बनता है या नहीं। तब उसमें उनको सुवर्ण का किंचित अंश भी प्राप्त नहीं हुआ। अतः इस पर से यह सिद्ध हो जाता है कि पारद चाहे किसी रूप में क्यों न हो, फिर चाहे वह तैल के रूप में हो अथवा किसी पदार्थ के रूप में या जड़ी बूटी के रूप में हो, सुवर्ण खिलाकर ही उसका सुवर्ण बनाने का यत्न करना चाहिए।
॥ॐ नम शिवाय॥
Very good know lege
Thanks for all … bhai ji