श्वेत सोमल सफेद संखिया गौरीपाषाण Sankhiya Safed White Arsenic ayurveda purposes only

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Description

संस्कृत गौरीपाषाण
हिंदी संखिया
English white arsenic or vitreous
Botanical name Arsenious oxide

उपयोगः

(1) चिकित्सा अर्थ औषध हेतु

(2) मक्खी मारने की दवा बनाने हेतु।

(3) आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में औषधि बनाने हेतु

(4) काँच और रङ्ग बनाने हेतु ।

शंखमूष,सम्बल,शंखविष,फेनाशम,मल्लक,सोमल,दारुमूषा।

इतिहास:-

सर्वप्रथम इसका उल्लेख सुश्रुत संहिता कल्पस्थान के अध्याय 1 में ‘फेनाश्म हरितालं च द्वे धातु विषे ‘ मिलता है।

●यह पारद के बन्धन आदि में उपयोगी होने से रसशास्त्र में साधारण वर्ग में माना गया है।

Habitat:-;

चीन, यूरोप एवं भारत में हजारीबाग (झारखण्ड) चित्राल (कश्मीर), बंगाल के दार्जिलिंग, उत्तर प्रदेश के अल्मोडा जिले एवं लाहौर ही इसे कम्पिलक का आदि क्त्रों में क्षादि खनिजों के साथ मिलता है। कृत्रिम आर्सेनोपायराइट कारखानों की चिमनी से प्राप्त होता है।

संखिया शोधन:-

स्फटिकाभं श्रेष्ठं कारवल्लीफले क्षिपेत्। स्वेदयेद् हण्डिकामध्ये शुद्धो भवति मूषकः“।। (र. र. स. 3/131)

(1) स्फटिक संख्या को बड़े करेले के फल को चीरकर उसके मध्य में रखकर दोला यन्त्र विधि से एक प्रहर स्वेदन करने पर संखिया शुद्ध हो जाता है।

संखिया मारण-

शुद्ध कोमल को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर लाजवन्ती के कल्क के बीच में रखकर शराव सम्पुट करें।

सूखने पर एक किलो ऊपलों की अग्नि से पाक करे।

★इस प्रकार सात बार पुट देने पर सोमल की भस्म बन जाती है। यह अत्यन्त कामोद्दीपक होती है।

संखिया के गुण :

यह गुण में ●स्निग्ध, ●रसबन्धकर, ●विष के समान एव रसवीर्य कर होता है।

रसतरंगिणीकार के अनुसार

◆ संखिया स्निग्ध, ◆त्रिदोषघ्न,◆ रसबन्धकर,◆ कफ वात रोग नाशक, ◆बिच्छू आदि विषनाशक, ◆एक मास प्रयोग करने पर दारुण श्वासरोग नाशक और विविध कुष्ठों को निःसन्देह दूर करता है।

◆ श्लीपद, ज्वर, कामोद्दीपक, फिरंगनाशक, अग्निमांद्य, विषमज्वर, कान्तिदायक, जीर्ण पाण्डु रोग नाशक।

संखिया की मात्रा- 1/120 रत्ती से 3 रत्ती तक।

संखिया मात्रा निर्माण:-

●एक रत्ती शुद्ध संखिया में 15 माशा कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर आर्द्रक स्वरस से खल्व में 3 दिन तक मर्दन करके 1-1 रत्ती की गोली बनाकर प्रातः सायं एक-एक गोली तद्तद् रोगशान्ति के लिए प्रयोग करें।

संखिया सत्वपातन

यह आर्सेनिक और ऑक्सीजन का यौगिक होने इसका सत्त्व ज्यादा उपयोगी नहीं है।

फिर भी हरताल सत्त्वपातन की तरह इसका भी सत्त्वपातन करना चाहिए।

■ इसका सत्व शुभ्र होता है।

मात्राधिक्य संखिया सेवन से हानिः

संखिया तीव्र विष होने से एक रत्ती मात्रा में खाने पर मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। इसकी घातक मात्रा एक रत्ती होती है

संखिया विषप्रभाव शमनोपाय:

(1) गोदुग्ध में गोघृत और मिश्री मिलाकर पिलाना।

(2) टङ्कण का जलीय विलयन पिलाना

(3) मिश्री एवं मक्खन के साथ तिल चूर्ण मिलाकर खिलाना।

(4) करैलाफल स्वरस पिलाना।

(5) अंडे की जर्दी के साथ घी पिलाना।

(6) यव का आटा पानी में घोलकर मधु मिलाकर पिलाना।

औषधि

(1) हाइड्रेटेड फेरिक ऑक्साइड

(2) कैलेसाइड मैग्नेशिया

(3) ब्रिटिश एन्टी लिविसाईट (British Anti Liwisite)

(4) डिमर कैप्टन (Demer Captal)

संखिया के प्रमुख योग-

(1) समीरपन्नग रस

(2) मल्ल सिन्दूर

(3) शंख विषय रस

(4) सन्निपातभैरव रस

(5) सूचिकाभरण रस

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