पारद याने पारा वर्तमान काल के सब ही वैज्ञानिक इसको ‘पारा’ या मयुरी’ के नाम से पहचानते हैं। यह एक द्रव धातु रूप है, युनानी में इसको सीमाब या रूह कहते हैं। प्राचीन सिद्धों ने इसको ‘नागा, रेत, श्वेतमणि’ तथा द्रुत ‘रजत’ भी कहा है। इसका खास धर्म है अग्निताप लगते ही उड़ जाना। इसको अग्नि में ठहराने के लिए याने अग्निस्थाई बनाने के लिए प्राचीन काल से वर्तमान काल तक नाना पंथों तथा नाना देश के लोगों ने महान प्रयत्न किए हैं परन्तु इसमें कितने भाग्यवान सफल हुए वह भगवान ही जाने! खैर अब मेरे ख्याल से इसके विषय में यहाँ पर इससे अधिक जानकारी करा देने की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरे प्रिय पाठक तथा तन्त्र साधक अब इतने अनजान नहीं रहे हैं कि वह पारद को न समझ सकें। विज्ञानदारी के लिए तनिक सा इशारा भी काफी होता है
पारद गुटिका किस प्रकार बनती है?
शुद्ध पारे को नकछिकनी के रस में रगड़ते-रगड़ते गोली बना लीजिए। बस गोली बन गई।
नकछिकनी से रस निकालने के लिए पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए। हरी ताजा नकछिकनी कूटो और छानकर रस निकालों इसका रस लेसदार होता है और घोड़ा निकलता है अतः यत्नपूर्वक निकालें।
स्तम्भन के अलावा यह गोली एक दूसरा काम भी करती है। गरम दूध में मिनट उस गोली को डाल दो। फिर गोली निकाल शहद मिलाकर उस दूध को पी लो। उस दूध से शुद्ध रक्त से शुक्र बनेगा ही। हाँ तो वह वीर्य ऐसा असाधारण वीर्य या ‘महावीर्य’ बनेगा कि जिससे न तो ‘स्वप्नदोष’ का भय रहेगा और न ‘शीघ्रपतन’ का डर रहेगा।
जिन स्थानों पर नकछिकनी मिलती हो, उन स्थलों के पाठक तथा वैद्य अवश्य गोली को बनाने का यत्न करें।
सुनील भाई मैं मध्यप्रदेश से हू मुझे २००ml तेज सिरिका चाहिए मतलब ऐसीटिक अम्ल
लेकिन आपकी वेबसाइट पर नहीं दिख रहा है
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